वो जमाना
आज मैं उस जमाने की बात कर रहा हूं जो जमाना कहावतों से, परियों की कहानियों से, दादा दादी, नाना नानी की मोहब्बतों से भरा पड़ा था।
आज इन सब चीजों को सोच सोच कर खयालों में खो जाता हूं अपने बचपन की।
वो छत की मुंडेर पर बैठकर कागा की कांव-कांव बड़े बुजुर्ग कहते थे आज घर में कोई मेहमान आने वाला है। घर के बड़े हो या बच्चे सभी अंजान मेहमान के आने की खुशी में खुश होते थे और स्वागत के लिए तरह-तरह के पकवान बनते थे। आज मेहमान का नाम सुनते ही ऐसा लगता है मानो सिर पर कोई पहाड़ गिरने वाला है “अपना खर्चा तो चलता नहीं एक मेहमान और आकर धरा जाएगा” यह सोच उस जमाने में नहीं थी।
मेहमान को हमेशा से भगवान का दर्जा दिया गया यही संस्कार हमें हमारे बड़े बुजुर्गों ने दिए लेकिन आज जमाना कितना बदल गया यह देख कर मन बहुत दुखी होता है लेकिन बच्चों के आगे और आधुनिकता के आगे चुप रहने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचता।
दाने दाने पर लिखा खाने वाले का नाम यह कथन आज भी सत्य है सभी से निवेदन अपनी परंपराओं और संस्कारों का निरादर ना होने दें। धन्यवाद
वीर कुमार जैन
02 जुलाई 2021