वो छैला है पुर्दिल चांद गगन का
वो जो दूर गगन में दागदार सा चांद है न मुझको उसी को तकना है
शफ़्फ़ाक दरिया का चांद तुम रख लो मुझ को क्या उसका क्या करना है
शीशे के दिल बनाने वालों से तो पूछो क्या उस दिल में भी दिलबर रहता है
मुझ को अपने जाना से मतलब रहते होंगे रहने वाले उससे मुझको क्या करना है
रात और दिन के चैखट पर उसके ही पहलू में सोए उसके ही पहलू में जागे
उसके ख्वाबों के बिस्तर पर ही अपने बदन को हीज्र ओ वस्ल में धरना है
वो छैला है पुर्दिल चांद गगन का सब के हिस्से में उसको तो तकना है
मैं चकोर धरा की मुझ को किसी से क्या करना है बस अपने हिस्से का तकना है
~ सिद्धार्थ