वो छाँव ••
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वो छाँव मुझे अक्सर याद आ जाती है,
जिसने मुझे हमेशा बचा के रखा,
सुख हो या दुख,मुझे हँसा के रखा,
जब बचपन में कभी गर्मी में,
वो धूप मुझे जलाती थी,
तब अक्सर वो छाँव मुझे,
ढककर उससे बचाती थी,
जब कभी पड़ा मुसीबत में,
वो निकालकर लाती थी,
जब भी मैं हुआ फ़ेल,
वो मुझको ढांढस बंधाती थी,
मेरे बहते आंसू को भी,
उसने खुद से पोछा था,
जब जब बहा पसीना मेरा,
वो ठंडक बनकर आती थी,
वो छाँव मेरी माँ की,
मेरे साथ हमेशा रहती है,
आशीर्वाद सदा रहेगा साथ तेरे,
ये माँ हमेशा कहती थी ।
◆◆©ऋषि सिंह “गूंज”