वो चुप सी दीवारें
वो चुप सी दीवारें
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वह चुप सी दीवारें
उदास खिड़कियाँ
वो बंद दरवाजे
वो शोर मचाती हुई
घड़ी की सुइयाँ
वो घर का सूनापन
वह बेबस चिमनियाँ !
वो गहरा सन्नाटा
वो अनसुना सा शोर
वो झींगुर की आवाजें
वो दीमक भरी लकड़ियाँ ।
वो घनघोर अंधेरी रातें
वो नाराज रश्मियाँ
वो टूटता सा मन
वो निराश जिंदगियां !
वो ठहरे हुए से लोग
वो बेतहाशा दौड़ती पटरियाँ
वो आशियाना वीरान सा
वो कड़कड़ाती बिजलियां !
वो तेज हवा के झोंके
वो पत्तों की सरसराहट
वो अनोखी ध्वनियाँ !
वो परेशान से लोग
वो रूठी हुई सी खुशियां ,
वो भूली बिसरी यादें
वो गुमनाम दुनिया !