वो चिट्ठी
तेरी आंखों की गहराई, मेरे दिल मे उतर आई l
कोई होगा दीवानापन, इस ख्याल से जोड़ दिया मन ll
एक गहरी चाह छिपी थी, तेरी चिट्टी से उभरी थी l
तेरा खुद का बना इरादा, शादी का कर लिया वादा ll
क्यू मन ने पलटा खाया, “संतोषी” कुछ समझ ना पाया l
जुड़ हुए रिश्तों को, उसने छोड़ा सब रस्तों को ll
तेरे धोखे ने दिल को तोड़ा, उसे बीच धार भटकते छोड़ा l
रहा ढूंढ दवा “संतोषी”, धोकर जख्मो को भरे निमेषी ll
दे दोष तुझे बेचारा,या करम गति ने है मारा l
उस मंजिल रहा वो चलता, जहाँ कीट पतंगा है जलता ll