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1 Oct 2024 · 1 min read

वो चिट्ठी

तेरी आंखों की गहराई, मेरे दिल मे उतर आई l
कोई होगा दीवानापन, इस ख्याल से जोड़ दिया मन ll

एक गहरी चाह छिपी थी, तेरी चिट्टी से उभरी थी l
तेरा खुद का बना इरादा, शादी का कर लिया वादा ll

क्यू मन ने पलटा खाया, “संतोषी” कुछ समझ ना पाया l
जुड़ हुए रिश्तों को, उसने छोड़ा सब रस्तों को ll

तेरे धोखे ने दिल को तोड़ा, उसे बीच धार भटकते छोड़ा l
रहा ढूंढ दवा “संतोषी”, धोकर जख्मो को भरे निमेषी ll

दे दोष तुझे बेचारा,या करम गति ने है मारा l
उस मंजिल रहा वो चलता, जहाँ कीट पतंगा है जलता ll

Language: Hindi
46 Views

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