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13 Jun 2023 · 1 min read

वो चाहतें हैं हमको कीचड़ में गिराना

वो चाहतें हैं हमको कीचड़ में गिराना
जिनके बस में नहीं अपने धब्बे छुड़ाना

बन्द कमरे में ख़ामोश बैठी हूँ कब से
संग-दिलों को हाल-ए-ग़म क्या सुनाना

क़िताब-ए-ज़ीस्त के इक-इक पन्ने पर
हमने लिखा है फ़क़त तुम्हारा फ़साना

हर दश्त को शहर बना कर के साहिब
मत छीनो बेज़ुबानों से उनका ठिकाना

मिन्नतें करो तो लोग समझते हैं कमतर
हमने छोड़ दिया रूठे हुओं को मनाना

त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’
कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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