वो चांद खिड़कियों का
वो चांद खिड़कियों का कहां चला गया
कल ही तो देखा था उसको,उसके आंगन में,
मस्ती में सखियों के संग खेली रहीं थी खेल।
दिल चाहा जीता दू जाकर उसको ,उसके ही खेल।
या कर लूं मैं शामिल उसको अपने खेल में
जब पलटकर देखा उसने हमको
बात लफ़्ज़ों पे ना आई
कहता क्या या चुप रहता
दिल ने ना दी कोई गवाही
हो गया मैं भी शामिल उसमें
उसने ऐसी अदा (हमें) दिखाई
दिल चाहा जीता दू जाकर उसको ,उसके खेल में
या कर लूं मैं शामिल उसको अपने खेल में
थामकर चलीं जब हाथ वो मेरे
बजने लगी चारों तरफ़ शहनाई
पीछे-पीछे चल दिया मैं भी
मानों सातों फेरा संग मेरे लगाई
करता क्या, हो गया मैं भी शामिल उसमें
उसने ऐसी तिरछी नज़र उठाई
दिल चाहा जीता दू जाकर उसको ,उसके खेल में
या कर लूं मैं शामिल उसको अपने खेल में
वो चांद खिड़कियों का कहां चला गया
कल ही तो देखा था उसको,उसके आंगन में,
मस्ती में सखियों के संग खेली रहीं थी खेल।
दिल चाहा जीता दू जाकर उसको ,उसके ही खेल।
या कर लूं मैं शामिल उसको अपने खेल में
नितु साह(हुसेना बंगरा)सीवान-बिहार