वो घुंघराले बालों वाली लड़की
वो घुंघराले बालों वाली लड़की
जिसकी आँखें हल्की सी कत्थई थी,
वो अल्हड़ सी लड़की जिसके
लबों का रंग गुलाबी था,
जो देर रात तक आसमाँ के तारे गिनती रहती थी ,
और आँखें जिसकी हर सुबह नीम-ख़्वाबीदा रहती थी,
वो हँसती थी तो लगता था ,
गोया चाँद की जुड़वाँ थी,
सबको नाजाने वो लड़की कैसी लगती थी
मुझको पर वो परियों के देश की मल्लिका लगती थी,
मुझको पर वो परियों के देश की मल्लिका लगती थी।
उस आईने को कितना ज़ोम था
जिसे देखकर वो सँवरती थी,
उस कमरे को कितना गुमाँ था ख़ुद पर
हर रात जहाँ वो सोती थी,
वो दीवारें कितनी खुश थी
जहाँ सिर रखकर वो गाती थी,
उसके कमरे की अलमारी कितनी किस्मतवाली थी
अपनी ख़ुशबू के कपड़ें वो वहीं संभालके रखती थी,
वो घुंघराले बालों वाली लड़की
हर शायर को क़सीदा लगती थी,
मुझको पर वो परियों के देश की मल्लिका लगती थी,
मुझको पर वो परियों के देश की मल्लिका लगती थी।
-जॉनी अहमद “क़ैस”