वो गुरू ही तो है –
हम तो जाते भटक, पथ किसी मोड़ पर,
राह को खोजकर ,पीठ को ठोंक क़र।
जो बढ़ाता गया मंजिलों की तरफ।
मंजिलों का पता बस गुरू को ही है।
हम तो जाते भटक, —
हम तो जाते बिखर टूट कर शाख से,
खाक में जाते मिल आंधियों में बिखर।
हम को चुन चुन सदा जो सजाता रहा।
गुल की क़ीमत है क्या ,कद्र उसकी पता बागवां को ही है।
हम तो जाते भटक –
स्वप्न जाते बिखर खुलकर इस आंख से।
हम तो जाते सुधर जिसकी एक डांट से ।
चुन कर गुण जो सदा अवगुणों को रेखा जो भुलाता रहा।
वो गुरु ही तो है।
हम तो जाते भटक पथ किसी मोड़ पर।