वो ख्वाब -ऐ -नगर… !!
अपनी उम्मीद से ज्यादा मिला है मुझे,
जिस मुकाम का सफर मे.. इंतज़ार था मुझे,
जिन ख्वाहिशों का नशा चढ़ा था मुझे,
वो मुकम्मल जहां मिला है मुझे !!
तानो की छाह जब -ज़ब पडती गयी,
हौसला-ऐ -सुकून मेरा बढ़ता गया,
जब भी आयी ज़माने की तंगी मुझे,
कुछ तो जरुरत से मेरे घटता गया !!
कई जुगनूओ से राह रोशन हुई,
कई दोस्तों ने उम्मीद -ऐ -किरण दिखाई,
शुक्रिया ऐ कुदरत.. जो ऐसी दुनिया बनायीं,
अच्छो से अच्छी, बुरो से बनी बुराई !!
जिंदगी की हर मुश्किल सिखाती है एक नया हुनर,
जीतना ही हो तेरा लक्ष्य -ऐ -सफर,
मिले चाहे तुझको, कोई भी रहगुजर,
याद रखना ऐ दोस्त, वो ख्वाब ऐ नगर.. !!