वो खुशियां लौट आएंगी
दूर होकर के तुम,
याद बहुत आते थे।
पास आकर के फिर,
ये दूरियां क्यों हो गयीं।
वफ़ा हम दोनों ने,
निभाईं हैं अब तक,
फिर बेवफा सी ये,
मजबूरियां क्यों हो गयीं।
चले थे साथ हम दोनों,
लेकर हाँथ एक दूसरे का,
रास्ते अलग हुए थे और,
हाँथ भी छूटे थे अपने।
यादों में रहते थे पास,
तुम हरदम मेरे
जागते और सोते मै,
देखती थी तेरे सपने।
ख्वाहिश थी की जब
पास होंगे तुम तो
दिलों जान तुम पर
हर पल लुटाउंगी।
रूठोगे तुम जो मुझसे
सब कुछ कर तुम्हे मनाऊंगी।
न होगा कोई लम्हा
न होगा कोई कारण
जो कर पायेगा हमें जुदा ।
दिल के मंदिर में,
रहोगे तुम मेरे ,
बनकर के मेरे खुदा ।
वो वक़्त भी आया,
को घड़ी भी आयी।
जो हम दोनों को,
इस कदर करीब लायी।
उठी थी मेरे घर डोली तब,
बजी थी तेरे घर शहनाई।
कुछ वक़्त तो बीता था अच्छा
और आयी थी ढेरों खुशियाँ।
बड़ी किस्मती वाली हैं तू ,
ये कहती थी सारी सखियाँ।
फिर न जाने किसकी ये,
बुरी नजर लग गयी।
जैसे बहते हुए पानी में
एक आग सी लग गयी।
दिन और रात बीतते हैं अब,
सिर्फ लड़ते और झगड़ते।
एक दूसरे को तने सुनते,
एक दूसरे पर तंज कसते।
ऐसी कौन सी बात हैं तेरी,
जो मैंने अब तक सही नही।
अलगाव की हद हैं बाकी,
साथ रहने की वजह कुछ रही नही।
गुजरते वक़्त के साथ साथ,
पुराना हो रहा ये रोग।
क्या करूँ मै जतन,
जो फिर से मिल जाएँ जोग।
गलती किसकी कहूं ,
और किसे दूँ मै ये दोष।
रो रोकर आंसू हैं सूखे,
और रहा न कोई होश।
कुछ उम्मीद अभी भी बाकी हैं,
की मेरी दुआएं रंग लाएंगी।
कुछ तो ऐसा होगा की,
“वो खुशियाँ लौट आएंगी”