वो खुलेआम फूल लिए फिरते हैं
वो खुलेआम फूल लिए फिरते हैं
फूलों की इज्जत उछाल रखी है
जिस्मो की हवस के आशिक कई
जिन्होंने मोहब्बत बिगाड़ रखी है !
✍कवि दीपक सरल
वो खुलेआम फूल लिए फिरते हैं
फूलों की इज्जत उछाल रखी है
जिस्मो की हवस के आशिक कई
जिन्होंने मोहब्बत बिगाड़ रखी है !
✍कवि दीपक सरल