*वो खफ़ा हम से इस कदर*
वो खफ़ा हम से इस कदर
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वो खफ़ा हम से हैँ इस कदर,
कभी आये नहीं वो इस ड़गर।
लो सुनो आ कर तुम इधर,
राह देखूँ , कब होगी खबर।
शाम होने को आई सनम,
ताकती रहती तुम को नजर।
चाँद तारे धरती पर गगन,
हाथ में होगा प्यारा पहर।
पास हो कर भी है दूर वो,
ढूंढता रहता हूँ दर बदर।
होश खोई सुध बुध भी नहीं,
जानता हूँ है उन का असर।
यार मनसीरत जिद्द पर अडा,
काश होता अपना हमसफ़र।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)