वो क्षण
वो क्षण गए थे तुम जब बीच राह में छोड़,
तकती हूँ अब तुम्हारे आगमन की आए भोर।
उसी मोड़ पे वो क्षण रुका हुआ है प्रियतम,
अब देह से भी नही निकलता है ये दम।
कभी तुम्हारे दरस हो जाये यही आस लिए,
प्राण पंखेरू ना उड़ जाए तेरी प्यास लिए।
वो क्षण आज भी वहीं थमा सा लगता है
ये भ्रम आज भी यहीं मेरे हृदय में रहता हैं।
तुम अपने जीवन के उस लम्हे से आज मुक्त हो,
पर मेरे हृदय में प्रिये आज भी तुम व्याप्त हो।
आकर एक बार मुझे भी स्वतंत्र कर दो,
मुझे इस अशांत जीवन में खुशी का एक क्षण प्राप्त करा दो।
स्वरचित
मोनिका गुप्ता