वो क्या था
वो क्या था
बचपन में
जब पिता जी ने
अपने कंधे पर बिठा कर
मेला घुमाया था
तब मुझे नही पता था
वो क्या था
थोड़ा बड़ा हुआ तो
गोद में उठा कर
स्कूल तक लाये थे
मुझे अकेला छोड़ कर
वापस चले गए थे
तब मुझे नही पता था
वो क्या था
एक खिलोने की ज़िद करके
जब मैं रोया था
दोपहर की गर्मी में
पसीने से लथपथ
बाजार जाकर खिलोना लाए थे
तब मुझे नही पता था
वो क्या था
हर त्योहार पर
नए कपड़े सिलवाना
सबके लिए मिठाई
और तोहफे लाना
खुद वही पुराने कपड़े पहनना
तब मुझे नही पता था
वो क्या था
स्कूल से निकल कर
कॉलेज में जाना
कॉलेज का दूर होना
कॉलेज जाने के लिए मुझे
नई साईकल दिलाना
तब मुझे नही पता था
वो क्या था
कॉलेज में दोस्तों के संग
कैंटीन में चाय समोसे खाना
दोस्तों की फरमाइश पूरी करने को
पिता जी से पैसे मांगना
कुछ भी मुझसे पूछे बिना
जेब से सारे पैसे निकाल कर दे देना
तब मुझे नही पता था
वो क्या था
आज जब पढ़ लिख कर
एक कामयाब इंसान बन गया
इस कामयाबी के पीछे
छिपा किसी का दर्द
किसी का प्यार
सब समझ में आ रहा है
तब जिसने अपना सब कुछ
मुझे कामयाब बनाने में लगा दिया
आज भी वही पुराना कुर्ता पहने
पिता जी ने सीने से लगा लिया
पिता जी का चेहरा
और उनका वो पुराना कुर्ता
खुशी से चमक रहे थे
हम दोनों की आँखो से
खुशी के आंसू बह रहे थे
आज वो सब कुछ समझ आ गया था
आज मुझे पता चल गया था
तब का वो सब क्या था
वो उनकी आँखों का सपना था
जो आज पूरा हो गया था