*वो क्या जाने*
वो क्या जाने
मिली विरासत में हो महल,शौहरत,दौलतजिन्हें,,
वो झोपड़ी की जर्जर दीवारों के मर्म क्या जाने,,
खुशियों की बहार आती जाती हो जिनकी जिंदगी में,,
वो मुफ़लिसी में पले उस लाचार का गम क्या जाने,,
महफ़िल जश्न जाम में राते जिनकी गुजरती हो,,
वो जमीन पर पड़े ठण्ड से ठिठुरते बुढो की जरूरत को क्या जाने,,
जिसकी यादों में गुजरे मजनूं की रैना सारी,,
तन्हाई ये दर्द गम को बेवफा लैला क्या जाने,,
जो रौंद देते राह में चीटियों के घरोंदे,,
वो आहंकारी मिजाजी परिश्रम को क्या जाने,,
क्यो और कैसे कविता का रचन करती है सोनु,,
चंद न समझ उसके जज़बातों को क्या जाने,,
सोनु जैन मन्दसौर