वो कौन सी चिरैया ले आऊं….
वो कौन सी चिरैया ले आऊं….
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वो कौन सी चिरैया ले आऊं….
जिसके पंख पकड़ उड़ जाऊं !!
दिन रात ही मेहनत करता हूॅं !
ईमानदारी में विश्वास रखता हूॅं !
किसी का नहीं कुछ बिगाड़ता हूॅं !
ईश्वर में अटूट विश्वास रखता हूॅं !
हर नियम-कानून को मानता हूॅं !
पर आसमां को नहीं छू पाता हूॅं !
बस, जमीं पे ही रेंगता रह जाता हूॅं!!
वो कौन सी चिरैया ले आऊं….
जिसके पंख पकड़ उड़ जाऊं !!
इंसानियत की कीमत समझता हूॅं !
गरीबों की हालत पे तरस खाता हूॅं !
गरीबी-अमीरी में फ़र्क नहीं करता हूॅं !
दया,करुणा का भाव दिल में रखता हूॅं!
सही राह पर ही रात-दिन चलता हूॅं !
अपने पथ से नहीं कभी भटकता हूॅं !
भविष्य में क्या होगा…ये नहीं जानता हूॅं !
पर अभी तो जमीं पे ही खुद को पाता हूॅं!!
वो कौन सी चिरैया ले आऊं….
जिसके पंख पकड़ उड़ जाऊं !!
इस नश्वर संसार में रखा ही क्या है !
एक दिन तो सबको ही चले जाना है !
पर जब तक हैं दुनिया में, बस रंग जमाना है !
आने-जाने वाले मुसाफिरों का साथ निभाना है !
और अपनी झोली में थोड़ी इज़्ज़त बटोर जाना है !
सभी को इसी सोच पे ही जीवन में आगे बढ़ना है !
मैं सदा इसी सोच पे ही चलने का प्रयास करता हूॅं !
हरेक कदम सोच-समझकर ही कहीं पे रखता हूॅं !
पर अपने ख़्वाबों को ऊंची उड़ान नहीं दे पाता हूॅं !
तो दिन-रात मैं इसी सोच में ही डूबा रहता हूॅं….
कि वो कौन सी चिरैया ले आऊं….
जिसके पंख पकड़कर उड़ जाऊं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 20 अक्टूबर, 2021.
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