वो कौन थी जो बारिश में भींग रही थी
रात्रि का समय था
मुझे नींद नहीं आ रही थी
मैं बालकनी में बाहर खड़ी थी
बारिश देख रही थी
मैं तो रात भर जागती हूं
लिखने में व्यस्त रहती हूं
घर की व्यस्तता से मुक्त
खुद में ही खोई रहती हूं
देर तक मैं वहीं खड़ी थी
वर्षा को देखती रही थी
बारिश की बूंदे तेज़ हवा
के साथ मुझे भिंगा रही थी
तभी मेरी निगाहें मेरे सामने वाले
घर की छत पर आ टिकीं थी
वहां एक स्त्री थी जो की छत पर खड़ी थी
मेरी पड़ोसन थी नई नई आई थी
यहां आय कुछ ही दिन हुए थे
मेरी उसके साथ बात अभी तक हुई नहीं थी
अपरिचित थी अनजानी थी लेकिन कुछ जानी पहचानी थी
क्योंकि वो एक नारी थी, जननी थी गृहणी थी, नौकरीपेशा थी
मैं उसे ही देखती रही थी
वो भिंग रही थी बारिश में
पहले तो वो यहां से वहां घूम रही थी
मानो जैसे वो किसी को देख रही हो
लेकिन वो वहीं तेज़ बारिश में बैठ गई
यह बात मेरे लिए अजीब थी
इसीलिए मुझे शंका हुई
क्योंकि मैं भी एक स्त्री हूं
कोई भी महिला यदि गंदे छत में, वो भी रात में,
भरी बारिश में ऐसे भीगना
यानी समस्या का विकट होना
यानी कि दुखों का सैलाब आना,
मुझे अंदेशा हो चुका था अब तक हां लेकिन अधिक नहीं
वो घुटनों के बल बैठ गई
चीख चीख कर रोने लगी
वो वहीं बैठी घंटो रोती रही
मैं वहीं रुकी थमी, सहमी सी मानो
मैं उसके दर्द में मैं डूबती गई
बिना रोए ही मेरी आंखों से आंसुओं की धार
मेरे होंठो तक आ रही थी
आंसुओं की धारा रोकना
मेरे लिए आसान नहीं था
पहले तो मुझे ख्याल आया कि
मैं जाऊं और बात करूं
लेकिन मेरे क़दम अपने आप रुक गए
मुझे भय था कहीं वो यहां से चली न जाए
रोने से शायद उसका दर्द थोड़ा कम हो जाय
मैंने अनजाने में ही उसका दुख मेरे भीतर उतार लिया
मेरे भीतर अब अनगिनत सवालों ने पहरा जमा लिया था
क्या हुआ था जो वो ऐसे रो रही थी
क्या दुःख था जिसे वो सबसे छुपा रही थी
क्या झगड़ा हुआ था या कोई समस्या उत्पन्न हुई थी
क्यों वो ऐसे रो रही थी
जीवन से निराश हो रही थी
क्या जीवन में सम्मान नहीं था
या जीवन साथी का साथ नहीं था
न जानें ऐसे कितने ही अनगिनत सवाल अब मेरे मन में आ रहे थे
बस अब और मुझसे देखा नहीं गया और मेंने उसे रोकने का निर्णय किया
लेकिन तब तक वो जा चुकी थी
मैं उसे बुलाने के लिए आवाज़ दे रही थी सुनो………
लेकिन वर्षा तब तक अधिक तेज़ हो गई थी
वर्षा के साथ आंधी भी चल रही थी
मेरी आवाज दब कर रह गई थी
माहौल भयावह हो चुका था
स्ट्रीट लाइट चालू बंद चालू हो रही थी
बिजली कड़क रही थी
उस माहौल से मैं अब डर थी
और अब मैं भी भीतर जा रही थी
मुझे एक ही ख्याल आया कि इस दुनियां में
हर इंसान दुःखी है व्यथित है
कोई अपने सुख और दुःख बांट नहीं सकता है
क्योंकि सुख और दुःख दोनों में ही
प्रतियोगिता चल रही है
किसी से कोई दुःख बांटो तो वो अपने दस दुख गिना देंगे
किसी से एक खुशियां साझा किया तो वो अपनी खुशियां बता देंगे
आज सब बोलना चाहते हैं
लेकिन सुनना कोई नहीं चाहता
सबके दर्द हैं लेकिन कोई बांटना नहीं चाहता
_ सोनम पुनीत दुबे