वो कुछ ख़त
वो तेरी इक हँसी पर जान
मैंने अपनी वारी थी
कि मेरा दिल उसी पल में
तेरा होकर के माना था
मेरे ज़ज़्बात लफ़्ज़ों में
ज़ुबाँ तक आ न पाए थे
उन्ही ज़ज़्बात को मैंने
ख़तों में तब संवारा था
मेरे उन ख़त के बदले में
तुम्हारे ख़त जो आये थे
उन्हें सीने से चिपकाकर
हर इक पल तब गुज़ारा था
भले ही न बनी मेरी
मैं अब भी हूँ तुम्हारा ही
हैं अब भी बाक़ी मेरे पास
वो कुछ ख़त मोहब्बत के…..