वो और हमारी जिंदगी
अगर में राह बन जाऊं
मुसाफिर वो भी बन जाए
कभी पल भर ठहर जाऊं
वो बुत बन कर संभल जाए
अगर में थाम लूं दामन
वो मेरी सांस बन जाए
कभी जो गुनगुनायें तो
वो अल्फाज बन जाए
अगर में भीगता कागज
लिखावट वो भी हो जाए
कभी पतझड़ का में मौसम
वो तिनकों सी बिखर जाए
अगर तस्वीर वो मेरी
जो देखे तो सहम जाए
कभी इस पल वो रोए तो
कभी उस पल वो मुस्काये
अगर वो याद करले तो
बिन समझे उलझ जाए
कभी रब से हमें मांगे
इबादत में हमें पाए॥