वो और मैं..
वो कोमल फूल के जैसी है,
मैं निर्मम तेज सा कांटा हूं,
वो सबको बहुत लुभाती है,
मैं बस घायल कर जाता हूं…
वो जंगल की इक मैना है,
मैं पिंजरे वाला तोता हूं,
वो खुले विचारों वाली है,
मैं किया हुआ समझौता हूं…
वो रात पूर्णिमा वाली है,
मैं दिन का घोर उजाला हूं,
वो शीतल रात सुहानी है,
मैं तपता हुआ सहारा हूं…
वो मीठी वाणी कोयल की,
मैं मूक ध्वनि का राजा हूं,
वो तान बांसुरी वाली है,
मैं बिना स्वर का बाजा हूं…
वो कल कल बहती नदियां है,
मैं उसका एक किनारा हूं,
उसकी मंजिल सागर है,
मैं उसका एक सहारा हूं…