वो ऑंसू जो पुतलियों पे सूख गए
वो ऑंसू जो पुतलियों पे सूख गए
उनको तुम खुल कर बह जाने दो
उदासी के नील-स्याह सुर्मा को
ठहाकों के ऑंच में ही घुल जाने दो
रात का अंधेरा वाजिब है हम पे
सपने को बदन-ए- जिंदान में तपाने के लिए
दिन के उजाले को भी तो जायज समझो
सपने को उनवान तक पहुॅंचाने के लिए
कितने रंग, कितने रंग की खुशियां जहां में
जर्द उदासी के रंगों में तीलियों को जरा नहाने दो
इन्द्र धनुष से जो मांग कर लाई हैं रंगीनी
जीवन के मरुभूमि में उन्हें उगाने दो
प्राण अपने अधरों पे बसंत को मुस्कराने दो
~ सिद्धार्थ