— वो एम्बुलेंस की आवाज —
चारों तरफ इक सन्नाटा
कहीं से कोई आवाज नहीं
चारों तरफ मातम का मंजर
खामोशी को तोड़ती हुई
वो एम्बुलेंस की आवाज
धड़कती रात और दिन की
बढती सी धड़कन
सामने से आवाज देती
अपनी तेज गति से निकल गयी
सारा वातावरण उस आवाज में
सुनते ही गमगीन हो गया
न जाने किस को ले जा रही है
न जाने किस के घर विपदा आन पड़ी है
न जाने कहाँ ले गयी होगी
अपने साथ अनगिनत सवाल छोड़ जाती है
बस दिल से एक आवाज
उस जाने वाले के लिए
अनायास ही प्रार्थना रूप में निकल आती है
उस को जल्द स्वस्थ करना
न जाने उस के मन में
क्या क्या आस बाकी है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ