वो एक लम्हा
मैं न रहूँ
तुम लफ़्ज़ों में
समझना मेरे
ढूंढना मुझको
हर एहसास को
फिर सोचना मुझको
नमी बन के जो
आंखों में
तेरी आ जाऊं
वो एक लम्हा
जब तेरे दिल से
मैं गुज़र जाऊं
तुम्हारे ज़ेहन में
यादों सी मैं
बिख़र जाऊं
तलाशे तेरी नज़र
मुझको
और मैं
नज़र नहीं आऊं
फिर सोचना मुझको
फिर सोचना खुद को !
डाॅ फौज़िया नसीम शाद