वो एक रात 10
वो एक रात 10
नीलिमा अपने सामने खडी उस भयंकर बिल्ली से नजरें चुराने की कोशिश करती रही। उस बिल्ली की चमकती आँखों में कुछ सम्मोहन सा था। ऊपर से रवि के सारे शरीर का भार नीलिमा पर था। रवि को अभी तक होश नहीं आया था। नीलिमा की घबराहट बढ़ती जा रही थी। आखिर रवि के साथ ऊपर हुआ क्या था। रवि ऊपर पहुँचा कैसे और क्यूँ? अचानक भयंकर बिल्ली ने नीलिमा पर छलांग लगा दी। नीलिमा ने एक चीख मारी और उसका संतुलन बिगड़ गया। और…… रवि व नीलिमा दोनों बाकी बची सीढ़ियों से लुढ़कते हुए नीचे आ गिरे। नीलिमा बेहोश हो चुकी थी। उसके माथे से खून रिस रहा था। रवि अभी तक बेहोश ही पडा था। बिल्ली रवि के पास आई और देखते ही देखते एक भयानक आकृति में बदल गई। उसका शरीर हवा में नागिन की भाँति लहरा रहा था। आगे से दो हिस्सों में बँटी अपनी भयंकर लंबी जीभ को वह हवा में लहलहा रही थी। उस भयंकर आकृति ने रवि के चेहरे को जीभ से चाटना शुरू कर दिया। उसके मुँह से लार सी टपक रही थी। वातावरण में अजीब सी दहशत भर गई थी। तभी उस भयंकर आकृति के पास वह काला साया नमूदार हो गया। और वातावरण में गूँजी एक भयानक भर्राई सी आवाज –
“कलसर्पी”
चौंककर देखा उस भयंकर आकृति ने उस साये को।
“दूर हट जा इसके पास से……. ये तुम्हारे लिए स्वादिष्ट भोजन नहीं है…. ।”
और वो भयंकर आकृति जिसका नाम कलसर्पी था….. पीछे हट गई । तभी वो साया रवि के पास पहुँचा।
भयंकर हँसी —हहहहहहहाआआआआ”
साढे़ तीन सौ वर्षों के अंतराल के बाद ये पल नसीब हुआ है मुझे। वितिस्ता नक्षत्र की अमावस्या तिथि को पैदा हुआ ये शख्स मुझे सलामत चाहिए….. कलसर्पी….. हहहहहहाआआआआ।”
“अब मंडलिनी की शक्ति मेरे पास होगी…….. इसके संपूर्ण शरीर के रक्त से मैं मंडलिनी को स्नान कराऊँगा….. हहहहहाआआ……आज की अमावस्या से जो दसवीं अमावस्या होगी……. इसे कालगूटा ले आना…… कलसर्पी……. तब तक इसके मस्तिष्क पर संपूर्ण रूप से छा जाओ…… इसके सोचने और समझने की शक्ति को क्षीण कर दो……. लेकिन ध्यान रखना…… इसे अपना शिकार मत समझना…..और तब तक मैं मंडलिनी के लिए कालयज्ञ की तैयारी करता हूँ…….. हहहहहहहहहाआआआ” इतना कहकर वो काला साया कूदकर दीवार पर चिपक गया और बहुत तेजी से ऊपर की ओर चढ़ता चला गया…..ऊपर जाकर उस भयानक काले साये ने एक उछाल मारी और… गायब हो गया।
उधर……. उस कलसर्पी ने अपने शरीर को बहुत छोटा सा बनाया और रवि के कान में कूद गई…………..
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चारों चलते ही जा रहे थे। उनके चलने से चड़-चड़ की आवाज गूँज रही थी उस रहस्यमय जंगल में। रात गहराती जा रही थी। चारों चलते-चलते बुरी तरह से थक चुके थे।
“लो दिनेश… कोई ओपन स्पेस मिला ही तो नहीं…. अब क्या करोगे…..”इशी ने अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रखते हुए कहा।
“सही कह रही हो इशी….. ” मनु ने लगभग बैठते हुए कहा।
सुसी तो पैर ही पसार चुकी थी। दिनेश भी हार ही मान बैठा था। जितने आगे जाते…… जंगल गहराता जाता….. तभी उन्हें ऐसा लगा जैसे पानी के गिरने की आवाजें हों।
“अरे सुना तुमने…. ” दिनेश ने तीनों की तरफ देखते हुए कहा।
“हाँ…. ऐसा लगता है जैसे किसी झरने की आवाज हो…. ” सुसी बोली।
“झरना” ये शब्द सुनते ही मानों चारों के पंख लग गए… और चारों ने साहस सँजोकर आगे बढ़ने की ठान ली।
चारो फिर आवाज की दिशा में बढ़ गए। चड़ चड़ की आवाज जंगल में फिर गूँजने लगी। और…. उधर लहराता साया बराबर उन चारों पर नजर रखे हुए था।
जितना आगे बढ़ते जा रहे थे पानी गिरने की आवाजें स्पष्ट होती जा रही थी। नजदीक होती आवाज को सुनते ही चारों और तेजी से चलते जाते। जंगल की सघनता भी कम होती जा रही थी। पेडों की आपस की दूरी बढ़ती जा रही थी। और अंततः चारों ने जैसे ही जंगल को पार किया तो उन्होंने अपने सामने एक खूबसूरत नजारा पाया। सामने पहाड़ी से पानी की मोटी धार नीचे गिर रही थी। और उससे एक नदी का विस्तार हो गया था। तारों के प्रकाश में ज्यादा तो नहीं देख पाए पर लेकिन सब कुछ नुमाइश हो रहा था। झरने के आस पास काफी लंबा-चौड़ा स्पेश था। इशी तो खुशी से चहक रही थी।
“सुपर्ब यार….. यहाँ तो कैंपिंग करने में बडा़ मजा आएगा।” दिनेश ने कहा। और फिर चारों ने अपने-अपने सामान उतारे और अपने-अपने कैंप बनाने का निश्चय कर लिया।
लहराता साये की आँखों की चमक बढ़ चुकी थी। उसने यू टर्न लिया और एक भयंकर आवाज निकाली….. हूँ…. आआआआआआआ….. हूँ……. ”
अचानक चारों सिहर उठे।
“ये….. ये कैसी आवाज है…..? ” सुसी डरकर मनु के नजदीक आ गई।
थोड़ी देर निस्तब्धता…….. फिर दिनेश बोला
“अरे भाई हम जंगल में हैं……. और जंगल में तरह-तरह के जानवर होते हैँ…….. उनमें से ही किसी की आवाज होगी।”
“ऐसी आवाज कौन से जानवर की हो सकती है?” मनु ने कहा।
“हाँ…. ऐसी मुझे तो काफी अजीब ही लगी ये आवाज।” इशी बोली।
“क्यूँ न हम केवल दो कैंप बनाएँ……. और प्रत्येक में दो-दो रहें! ”
सुसी ने कहा।
“हाँ ऐसा ही करते हैं । कैंप के सामने आग जलाने के लिए पर्याप्त सूखी लकडियां बटोर लेंगे।
चारों ने सहमती दी…. और अपने-अपने काम में लग गए। लेकिन मनु का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। आखिर ये किस प्रकार के जानवर की आवाज थी………..!
सोनू हंस