*** वो उड़ती हुई पतंग ***
।।ॐ श्री परमात्मने नमः ।।
*** वो उड़ती हुई पतंग ***
मकर संक्रांति पर्व में पतंग उड़ाने का रिवाज है
इंद्रधनुषी घटाओ में लहराती बल खाती हुई पतंगों की उड़ान देखते ही बनती है मानो एक दूसरे से कह रहे हो किसमें कितना दम है पतंग को आसमान में ऊँचाइयों तक ले जाने की होड़ सी लगी रहती है।
साहिल को भी पतंग उड़ाने का बेहद शौक था लेकिन घर वाले पतंग उड़ाने की इजाजत नहीं देते थे उन्हें डर लगता था कि कहीं छत पर पतंग उड़ाते हुए इधर – उधर पैर रखते हुए कहीं गिर ना जाये चोट न लग जाये ….? ? ?
परन्तु जब मन में किसी चीज की लगन लगी हो , ख्वाहिशे उमंगों भरा हुआ हो तो कोई भी कार्य अछूता नहीं रहता है ….
किसी न किसी तरह से उसे पूरा करने के लिए बार – बार मन वही दौड़ता है ….! ! !
साहिल चुपके से रंगीन कागज , आटे की लुगदी , बांस की छोटी लकड़ियाँ -डंडियां , कांच के टुकड़े कर उसे कूटकर उससे पतंग की डोरी मांझा को तेज करता था।
सारी चीजों को एकत्र कर खुद ही चुपके – चुपके पतंग बनाने की तैयारी में जुट जाता था अपनी धुन में पक्का हो फिर कुछ नही सूझता था अतंतः पतंग बनाकर उसे ऐसी जगह पर छिपा देता जहां किसी की नजर ही ना पड़े और घरवालों की डांट भी न पड़े …..
मकर संक्रांति के दिन छत की मुंडेर पर पतंग उड़ाने की कोशिश में लगे रहता था लेकिन पतंग की डोरी से खींच नही पाता कभी पतंग पकड़ना कभी डोरी को खींचता अकेले की बस की बात नही थी फिर चुपके से चकरी पकड़ने के लिए छोटी बहन रीमा को बुलाता ……
खुले आकाश में स्वछंद हवाओं में पतंग उड़ाया छोटी बहन रीमा ने पतंग की चकरी की डोरी पकड़कर ढील देती इधर उधर करते हुए खींचते हुए पतंग आसमान में लहराने लगी हवाओं से बातें करने लगी थी …
आखिर साहिल की मेहनत रंग लाई उमंगों की ख्वाहिशों की उड़ान खुद की बनाई पतंग पर आजमाई थी ।अब पतंग आसमान में उड़ने लगी थी।
इस खुशी को व्यक्त करने के लिए परिवार वालों को भी आवाज लगाकर बुलाया … वो उड़ती हुई पतंग नील गगन में लहराती हुई उड़ते ही जा रही थी आज साहिल की मेहनत रंग लाई ये बेहतरीन नजारा देख सभी ख़ुशी से झूमने लगे इजहार करते हुए बहुत खुश हुए असली खुशियाँ परिवार के साथ ही बाँटने से ही मिलती है।
आकाश में देखते हुए आज साहिल का मन कह रहा था ” वो देखो उड़ चली मेरे ख्वाहिशों की पतंग उड़ते हुए दूर नील गगन में “
साहिल का मन आसमान की तरफ देख पतंग उड़ाने की ख़ुशी जाहिर कर रहा है परंतु ख़ुशी ज्यादा देर तक नही टिकी उसी समय दूसरी पतंग ने आकर साहिल की पतंग को काटकर चली गईं …….
बादलों में उड़ती हुई पतंग कहीं सुनसान विरान जंगलों में ना जाने कहाँ गुम हो गई …..
देखते ही देखते पतंग से डोरी अलग हो गई और अकेली टूटी हुई पतंग की डोरी थामे छोटी बहन स्तब्ध सी रह गई ये क्या हुआ ….
पतंग ना जाने कहाँ ओझल हो विलुप्त हो गई थी ।
* काट ना सके कभी कोई (आत्मारुपी )पतंग को ,
जो कट भी गई तो मोह माया में उलझ गई
उमंगों व तमन्नाओं की उड़ान पतंग बनकर
लंबी डोरी बांधकर उड़ाई थी
पर ऊपर वाले ने भी क्या किस्मत बनाई
छोटी डोरी संग लेकर उड़ चली गई
*स्वरचित मौलिक रचना ??
*** शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश #*