वो अपनी नज़रें क़िताबों में गड़ाए
वो अपनी नज़रें क़िताबों में गड़ाए
बड़ी महंगी बदहाली में जी रहे थे,
मुश्किलें लाख थीं मगर
ख्वाब आंखों में पाले वो लड़ रहे थे।
थे सब इस इंतजार में कि अपने
संघर्षों का परिणाम लेकर आएंगे
बैठेंगे उस पद पर जहाँ देश के काम आएंगे
पर किसने सोचा था,
वे ख़्वाब निष्प्राण पुतलियों में दफन हो जाएगें
इन ख़्वाबों के सौदागर
उनकी जान तक बेच खाएंगे।
और सारा देश बस बैठ कर तमाशा देखेगा
करने को कुछ सहानुभूति व्यक्त करेंगे
और बाकी मौन रहकर अपनी कमियाँ ढ़ापेगें।।
-©® Shikha