वो अपनापन ही तो है !
वो अपनापन ही तो है !
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वो अपनापन ही तो है——-
जो प्यार से, किसी ने मुझे पुकारा !
कितना प्यारा था वो पल——
जो दोस्त समझ, किसी ने पुचकारा !
अपना-पराया कुछ नहीं होता !
कोई भी कभी अपना हो जाता !
जो अपनेपन का भाव जगाता !!
वो अपनापन ही तो है——–
जो त्याग व समर्पण को दिखलाया !
सद्भाव व सहयोग की भावना को दर्शाया !
स्नेह के अमृत को बरसाया !
सौंधी सी खुशबू में मुझे घुलाया !
मस्तक ऊँचा किया हमारा !
सदैव रखूँगा मैं , मान तिहारा ।।
वो अपनापन ही तो है——–
जो अनुशासन व शिष्टाचार मुझे सिखाया ,
मुसीबतों से मुकाबला करना भी सिखलाया।
आज के युग में , इंसान वही है ,
जो इंसान की , कद्र है करता !
थोड़ा प्यार , गर दे देता !
प्यार कभी भी , कम ना पड़ता !!
वो अपनापन ही तो है——–
जो आज किसी को , कोई याद है करता !
सारा जग , आज कराह रहा है ,
अपना ही , अपने को लताड़ रहा है !
भूख-प्यास से , दुनिया हार रहा है ,
बेदर्दी में ही , दम तोड़ रहा है !
एक-एक बूँद पानी को, इंसान तड़प रहा है!
ऐसे में , प्यार के दो बोल जो देता !
वही सदा ही , अपना होता !
अपनेपन की बस, परिभाषा यही है !
जो समय पर , काम है देता !
दुनिया में ऐसे , भले लोग हैं जितने ,
अजित सदैव आभारी रहेगा, उन सबका !!
_ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
_ किशनगंज ( बिहार )