वो अजनबी
वो एक अजनबी जो मेरी जिंदगी में झोंका बनकर आया,
मेरे दिल में घर कर गया , मेरे ज़हन पर था छाया ,
कुछ इस क़दर उसने मुझमें अपने होने का एहसास कराया,
अब तक अपने व़जूद से खुद अनजान था मै जिसको उसने जगाया,
अब तक शायद नाराज़ था मैं खुद को खोकर ,
भटकता फिर रहा था मैं सराब़ों में परेशाँ होकर ,
इस जीस्त- ए- सफर की तीरग़ी में वो रोशन श़ुआएँ बन कर आया ,
वो इक इल्म़ का च़राग था , जो मेरी अंधेरी ज़िंदगानी को रोशन कर गया।