आओ करें वोट की चोट!
चुनावों का मौसम क्या आया,
दल बदलूओं ने रंग दिखलाया!
अवसर पाकर दल बदलते हैं,
सिद्धांतों की बड़ी बातें करते हैं,!
पर नहीं है सिद्धांतों से कोई वास्ता,
ढूंढ रहे हैं जीतने का रास्ता,!
सालों साल सत्ता में रहते हैं,
सत्ता की मलाई चखते रहते हैं,!
ऐन चुनाव पर करते हैं आना जाना,
जनता की भलाई का करते हैं बहाना!
नहीं अब इन्हें कोई जिताना,
दिमाग को इनके ठिकाने लगाना,!
वोट की चोट अब इन पर करो,
इन ढोंगियों से परहेज़ करो,!
इतनी सख्ती दिखाओ इन्हें,
दल बदल की ना कभी हिम्मत करें,!
आओ मिलकर अपने सरोकार जीएं,
जो सुख दुःख में साथ निभाएं उन्हें वोट करें,!
दल बदलूओं का अब तो करो सफाया,
है नहीं कोई इनमें दूध का नहाया,!
तब ना दल बदल का कोई साहस करेंगे,
आओ मिलकर अबकी यह प्रयास करेंगे!
दल बदलूओं का तो अब प्रतिकार करें,
अब ना कोई इनका स्वागत सत्कार करें,!
यही उचित समय है इनका बहिष्कार करें,
जहां जहां यह मिलें इनका तिरस्कार करें,!
शर्म हया ना इनमें बाकी है,
बेशर्मी ढिठाई ही इनकी झांकी है,!
ये सिर्फ अपने हितों के साधक हैं,
जनता के सरोकारों में ये बाधक हैं,!
इन्हें ना अब तुम माफ करना,
इन ढोंगियों के सपने को अबके साफ करना!
वर्ना जीवन भर यूं ही इनको ढोते रहेंगे,
ये जीत का जश्न मनाते रहेंगे,!
हम अपनी जिंदगी में ऐसे ही जीएंगे,
अपने संघर्षों से दो चार होते रहेंगे!!
ये अपने कुनबों को सजाते संवारते रहे हैं,
और हम रोजी-रोटी के लिए भटकते रहे हैं।।