वोट और राजा
आज जो बात तुम कह रहे हो,
कल किसी और ने कही थी,
भविष्य में कोई और कहेगा,
ये सिलसिले हैं, यूँ ही
ये सिलसिले हैं यूँ ही
अनवरत चलते रहेंगे.
हठ किस बात की प्यारे
न आज तेरे वश में है.
न कल तेरे वश में होगा.
आज तू केन्द्र है, धुरी है, धुरंधर है.
हम परिधि पर, चक्रव्यूह में,
कल के हम कलंदर हैं,
वोट धुरी है लोकतंत्र की,
कल तुम परिधि पर ….
उठने लगे है मेघ जन-आंदोलन से
घिर गया अपरिमित आकाश भी,
अब बरसकर ही छटेगा व्योम.
सब उठ जायेंगी परतें झूठ से,
जल,वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश
हमारा है, हमेशा से ,हमारे है.
वोट इकाई है दहाई सैंकड़ा इन्हीं से,
लोकतंत्र संविधान सब प्रस्तावना इन्हीं से.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस