वोटर की पॉलिटिक्स
वोटर की पॉलिटिक्स
“पिताजी, आप पिछले हफ्ते भर में पांच नेताओं से वोट देने के बदले में कुछ न कुछ उपहार या नगद राशि ले चुके हैं. वोट तो किसी भी एक ही को दे सकते हैं न, फिर ये… ?” उत्सुकतावश बारह वर्षीय बेटे ने अपने पिताजी से पूछा।
“हाँ बेटा, वोट तो एक ही व्यक्ति को दे सकता हूँ। वह जिसे देना है, उसे तो दे ही दूंगा, पर इन लोगों को, जो मतदाताओं को खरीदने का दंभ भर रहे हैं, उन्हें तो बिलकुल भी नहीं दूंगा। बेटा, जो आदमी जैसा होता है, वह दूसरों के विषय में भी वैसा ही सोचता है। ये लोग आज मतदाताओं को खरीदने की कोशिश कर रहे हैं, यदि किसी तरह जीत गए, तो कल देश को बेचने की कोशिश करेंगे।” पिताजी ने समझाते हुए कहा।
“यदि इन्हें वोट नहीं देना है, तो आपको इनसे कोई भी चीज नहीं लेनी चाहिए। आप ही मुझे ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं और आप ही ?” बेटे को सच जानने की जिज्ञाषा हो रही थी।
“बेटा, कभी-कभी बेईमान लोगों से बेईमानी से पेश आना पड़ता है। यदि मैंने इनके उपहार लेने से इनकार कर दिया, तो ये मुझे अपना दुश्मन मान बैठेंगे और परेशान करेंगे। इसलिए इनकी हाँ में हाँ मिलाना मेरी मजबूरी है, पर वोट तो पूर्णतः गोपनीय होता है। इसलिए वोट अपनी मर्जी से दूंगा।” पिताजी ने स्पष्ट किया।
अब बेटे की जिज्ञाषा शांत हो गई थी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़