वैशाख का महीना
वैशाख का महीना है,
बादल पसीने से निचुड़ रहा हैं,
धरती पिघल रही है,
आम चूसने का मन कर रहा है ।
ये चीकू ये अंगूर और अनार सब रस से भरे है,
छूकर देखो तो सब मखमल से बने है,
तरबूज अंदर से सुर्ख़ लाल हो रहा है,
सूखा गला गीला करने का दिल कर रहा है ।
चेहरे का मेकअप अब उतरने लगा है,
पतक्षण भी अब निकलने लगा है,
कोयल की कू कू बसंत में आने लगी है,
कोई नया फूल तोड़ने का दिल कर रहा है ।
फूस की बंद अंगड़ाइयाँ अब खुलने लगी है,
शर्दी की चिपकी बूंदे अब अलग होने लगी है,
खीरे ककड़ी लौकी करेला सब दिखाई दे रहे हैं,
लीची को छीलकर खाने का दिल कर रहा है ।
अब जमीन की भी प्यास बढ़ने लगी है,
हर जगह दरारें दिखने लगी हैं,
अब पंखों से काम चल नहीं रहा है,
एसी में कंबल ओढ़कर सोने का दिल कर रहा है ।