वैलेंटाइन
देख मान जा अब भी टाइम है।
वरना में वैलेंटाइन के विरोध में लिखूँगा।
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प्रिय मित्रों
प्रथम आप सभी को प्रेम दिवस की बधाई।
यूँ तो ये दिवस मुझे कभी प्रभावित नही किये यही कारण रहा इनकी बधाई देने में बहुत पीछे रहा किन्तु मेरे विचार से ये गलत नही है । प्रेम दिवस पर माँ-पिता की पूजा करो यह सब लिखा देखता हूँ तो खुद को घोर आश्चर्य में पाता हूँ ।
यूँ तो प्रेम किसी दिवस का मोहताज नही कितुं अगर इसके लिए उत्सव मानाने के लिए एक दिन तय कर लिया जाए तो भी में इसमें बुराई नही देखता हूँ।
जब होली दीपावली जैसे त्यौहारों के लिए दिवस तय है तो इसके लिए भी कर सकते है एक दिन ऐसा सब प्रेमरंग में हो।
अब मूल मुद्दे पर आता हूँ
माँ-पिता तो सुबह होते ही प्रथम वंदनीय है ।
हर दिन इनकी पूजा अनिवार्य है फिर भी मातृ पितृ दिवस निश्चित है।
जीवन साथी भी हमारे जीवन के अभिन्न अंग है तो उसके लिए भी इतना अनिवार्य है फिर पश्चिमि संस्कृति का हवाला देकर एक नेक कार्य का विरोध गलत समझता हूँ।
विरोध योग्य है खुले में इस प्यार की नुमाइश करना ये हमारी संस्कार नही सिखाते हमें बडों का सम्मान करना चाहिए शालीनता से यह दिवस पूरे उत्साह से मनाये मेरी शुभकामनाएँ है ,,,,में अपना एक शेर कह कर अपनी वाणी को विराम दूगाँ।।
“” सरेआम मत करो इश्क की नुमाइश
अंदर एक रूह है जो शर्म से जलती है””
नोट– इस की एक सही उम्र होती है बच्चे अपना ध्यान पढाई में लगायें जीवन का प्रवाह आप तक भी सही समय पँहुचेगा
इस पोस्ट पर किसी भी बहस के लिए में तैयार नही हूँ धन्यवाद
₩- रामकृष्ण शर्मा बेचैन