वैलेंटाइन डे ,
बाबूजी, ले लो न फूल, बिल्कुल ताज़ा है। इन शब्दों के साथ ही किसी ने उसकी जैकेट को थोड़ा खींचा भी
तो अचानक वो वास्तविक दुनिया में लौट आया।
पीछे मुड़कर देखा तो दो छोटे छोटे बच्चे गुलाब के फूल लिए खड़े थे। शायद भाई बहन थे। लडका 10 वर्ष का होगा और लड़की 6 या 7 वर्ष की होगी।
, “नहीं, बेटा मुझे नहीं चाहिए”
ये कह कर वह आगे बढने लगा तो लडका बोला, “साहब, आज तो सब किसी न किसी को फूल दे रहे हैं,
आप किसी को नहीं दोगे? “आज 14 फरवरी है ना साहब।
14 फरवरी सुन कर अचानक से उसने इधर उधर देखा
सच में हर जगह लडके लडकिया इधर उधर खड़े थे। किसी के हाथों में फूल थे किसी के हाथ में तोहफे।
” साहब, एक ही ले लो,। बस बीस रूपये ही दे दो।
ज्यादा नहीं “लड़के ने फिर जैकेट का कोना खींच कर कहा।
अचानक से उसकी दिलचस्पी बच्चों में हो गई।
” बीस रुपये ही क्यों, लोग तो पचास का बेच रहे हैं ”
लडका बोला, “साहब, मेरी बहन सुबह से भूखी है।
एक वडापाव तो मिल जायेगा इस के लिए। दोनों बच्चे उम्मीद भरी नजरों से उसे देख रहे थे।
भाई की आंखों में बहन के लिए प्यार साफ दिखाई दे रहा था। जो उसके मन को विचलित कर गया।
उसने पचास रुपये का नोट लड़के को थमा कर कहा, ” जाओ कुछ खा लो”।
लेकिन आप ने फूल नहीं लिए साहब।
मुझे भीख नहीं चाहिए।
खुद्दारी देख मन खुश हो गया।
एक गुलाब लिया और छोटी बच्ची के उलझे बालों में लगा वो आगे बढ़ गया।
हर वैलेंटाइन पर उदास रहने वाला उसका मन आज शांत था। ???
सुरिंदर कौर