*वैराग्य (सात दोहे)*
वैराग्य (सात दोहे)
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(1)
दुनिया से लो चल दिए ,दोनों खाली हाथ
किसे पता अब कब मिलें , यादें रखना साथ
(2)
दुनिया सब आ – जा रही ,मरते जीते लोग
लगा सभी को अंत में , वृद्धावस्था रोग
(3)
कुछ दिन ठहरे चल दिए , आवागमन स्वभाव
नदी सदा ठहरी रही ,चलती फिरती नाव
(4)
पता नहीं किसको कहें , सपनों वाली बात
दिन यह अब जो चल रहा ,या जो बीती रात
(5)
कल का क्या किसको पता ,कल जग का अज्ञात
आज दिवस जो दिख रहा ,करिए उसकी बात
(6)
गिने हुए थे दिन मिले ,थीं गिनती की साँस
फिर सब को लेकर. चले ,अर्थी के दो बाँस
(7)
खेल दिखा कर चल दिया ,जादूगर उस पार
सोच रहे सब क्या पता ,कब लौटे इस बार
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451