वे आजमाना चाहते हैं
कभी हमारे पुरखे रसूख वसूल सब एक थे
आजादी के आंदोलनों में सुर -आवाज एक थे ।
लेकिन कभी -कभी वो हमे आजमाना चाहता है
लेकिन हर बार हम उसे प्रेम से समझना चाहते हैं ।
मैं तुम्हारी बात समझता हूं, तुम मेरी बात समझते हो
बातें करो तो अंग्रेजी में हमसे कभी न बतियाया करो ।
मैंने उसका क्या बिगाड़ा था कि वह इतना बिगड़ गया
जहां उसको बिलकुल न बजना था वहां वह बज गया ।
हर बार सहारा दिया था जिसे हमने, आगे बढ़ाया था
मेरी लताओं को उतार वो ही मेरे दीवाल पर चढ़ गया ।
केवल बम न फोड़ा करों तुम दीप भी जलाया करों
दीपावली आती है तो मिठाई भी तो खिलाया करों ।
होली आने वाली है, फिर रंग- अबीर घर आने वाली है
पुआ पूरी दहीबड़ा गोजियां खा गुलाल खेला करो ।
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मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर