वेला
वेला
शाम….।
जैसे कोई नदी
खुश नसीबी सी
जैसे….।
बावरी चाहत का झोंका
भीगा भीगा सा
डूबता
तिरता..सा…
सुबह तक रहे न रहे।
रात ……।
जैसे कोई खूमारी
सुकूनी कोठारी
अपनों का साया
नींद का आगोश
नई सुबह का जोश
भौर ……..।
जैसे कोई …
तुगलकी फरमान
जो…….
रद्द कर दे सारी
पुरानी उबासती
प्रविष्ठियां।
खोल दे सुभित
संभावित
नवीन पृष्ठों की बही।
गोधूली
दूधिया-चांदनी
कनक-किरण
सरीखे
अलंकारों से
अलंकृत सुसज्जित
शाम,रात भौर ।
संगीता बैनीवाल