वेदना
किसी नगर में एक राजा था । उसका स्वभाव, कहा नहीं जा सकता है कि वह कैसा है?
उसके राज्य में प्रजा का जीवन यापन हो रहा था पर—।
एक दिन राजा अपने रथ पर सवार होकर कहीं जा रहा था, अचानक एक गेंद उसके रथ के पहिये से आ टकराया । रथ रुक गया । राजा क्रोध भरी आँखें फैलाई और पूछा यह दुस्साहस किसने की?
तभी एक छोटा सा बालक सामने खड़ा हो गया और बोला ” मेला गेंद दे दो ” राजा का क्रोध और भड़क गया । यह किसका बच्चा है राजा ने कहा । पास खड़े एक ने कहा कि “यह ढोमल नौकर का एकलौता बेटा है”
” नौकर का बच्चा ” राजा गुस्से से चिल्लाया – – – – ।
इतने में बच्चा बोल पड़ा” मैं नौकल का नहीं, माँ का लाजा बेता हूँ । जल्दी से मेला गेंद दे दो – – – – ।
” इस बच्चे को मैं बताता हूँ कि गेंद क्या होता है “राजा चिल्लाया और पैर से ठोकर मार बच्चे को गिरा दिया ।अपने पैर से इधर-उधर गेंद की तरह लुढकाने लगा । बच्चा रोता रहा माँ माऽऽऽऽऽऽऽऽ सुनने वाला कोई नहीं। बच्चा लहूलुहान हो गया उसके स्वर से करुणा भरी व्यथा निकल रही थी ।
अचानक राजा रुक गया । लोगों ने सोचा बच्चे की करुण ध्वनि से राजा अब शांत हो गया। राजा का हृदय बदल दिया । राजा भी हँसते हुए बच्चे को अपने पास बुलाया” इधर आओ ”
रक्तरंजित बालक जाने में आना कानी किया किन्तु राजा की हँसी को देखकर लोग कुछ और ही समझ कर , बच्चा को राजा के पास पहुंचा दिया । राजा ने पूछा ” तुम्हे चोट लगी है ” बोलो, बोलो न – – – – । बच्चा अस्मंजस भरी दृष्टि से देखने लगा अभी क्या हुआ था और अभी क्या हो रहा है(मानो राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ, बच्चा को लगा अब राजा अपनी बाहों में आलिंगन कर लेगा, बिलकुल अपनों की तरह ) और धीरे-धीरे उस बच्चे की आवाज धीमी पर गई थी। सहसा राजा जोरदार एक थप्पड़ दे मारी । बच्चा फिर से रोने लगा लेकिन राजा को बच्चा का रोने वाला अब का तब के स्वर से भिन्न लगा। उसने फिर मारी किन्तु लुढकता हुआ स्वर नहीं लगा । राजा जोर से चिल्लाया “उस समय की तरह अभी क्यों नहीं लग रहा है ”
अच्छा! (कुछ सोच कर) फिर से लुढका दिया वही क्रंदन स्वर सुनकर कहा ” मजा आ गया” !वह लुढकाता रहा, बच्चा रोता रहा – – – – – ।
अब राजा को यह खेल अच्छा लगने लगा।
राजा, तो, राजा था! नौकरों की कमी नहीं जब चाहता खेल शुरू हो जाती । जिन नौकर के बच्चों के साथ राजा खेलता चाहताथा। उसे भी राजा की हँसी में सम्मिलित होना पड़ता था यदि कोई अपने घायल परिवार को देखकर रोता था तो उस गेंद रुपी परिजन को समुद्र में फेंक दिया जाता था यह कह कर हमें – – – – – ।
राजा को वह रोदन, लहू का निशाना बनना, धारीदार लाल रंग दिखना बड़ा ही मनहर बन गया था ।जिनके परिवार होते थे, उनके हृदय में भले ही निर्छिन्न पीड़ा होती थी, हृदय विलख विलख कर रोता था, लेकिन राजा के लिए हँसते हुए ताली बजाना पड़ता था ।अपने और अपनों की पीड़ा भी – – – – !!!!!!!!!!
उमा झा