वेदनाओं का हृदय में नित्य आना हो रहा है, और मैं बस बाध्य होकर कर रहा हूँ आगवानी।
#बहुत_दिनों_बाद_पुनः_एक_गीत_आप_सभी_के_समक्ष
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वेदनाओं का हृदय में नित्य आना हो रहा है,
और मैं बस बाध्य होकर कर रहा हूँ आगवानी।
जन्म लेकर कोख से ही और उस पर वार करना,
लाभ के पथ का वरण कर खाक से ही प्यार करना।
मर रही संवेदना को देखना कुछ कह न पाना,
मानवी गुण के क्षरण की क्षुब्ध हो बस गीत गाना।
शूल बन अवगुण मनुज का वक्ष में धसने लगा है,
और मैं सुसाध्य बनकर कर रहा हूँ आगवानी।।
दम्भ ईर्ष्या द्वेष के फल बिक रहे चहुँओर देखो,
हर तरफ तम का है पहरा छिप गयी है भोर देखो।
टूटते संबंध की चहुँदिस लगी कैसी झड़ी है,
सभ्यता निर्वाण के पथ चल पड़ी दुष्कर घड़ी है।।
अब मनुजता के पतन की वेग है सचमुच तूफानी,
और मैं बस माध्य बनकर कर रहा हूँ आगवानी।
भाव अनुकम्पा हृदय से है मनुज के अब नदारद,
धर्म पथ से हैं विमुख वे जग जिन्हें कहता विशारद।
आपसी मतभेद कम मनभेद ही चलने लगा है,
भ्रात के उत्थान से भ्राता यहाँ जलने लगा है।
हे ! जगतपालक करो कुछ हाथ जोड़े जग खड़ा है,
और मैं भी राध्य बनकर कर रहा हूँ आगवानी।।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’