वेदनाएं जिन्दगी में, कर रही छाया घनी अब।।
उलझनों से तप्त राहें, हैं पहेली सी बनी अब।
वेदनाएं जिन्दगी में, कर रही छाया घनी अब।।
क्या घटित क्या घटने वाला, मैं करूं कैसे समीक्षा।
मौत के सु-आगमन तक, कर रहा सुख की प्रतीक्षा।
कष्ट से परिपूर्ण जीवन, भाग्य की भवहें तनी अब।
वेदनाएं जिन्दगी में, कर रही छाया घनी अब।।
हो गया परित्यक्त जीवन, मैं करूं किस पे भरोसा।
भाग्य का दुर्भाग्य देखो, ले रहा है आज बोसा।
आपदा का मैं हूँ मारा, लब्ध से मेरी ठनी अब।
वेदनाएं जिन्दगी में, कर रही छाया घनी अब।।
उत्सवों का फोड़ कर घट, वक्ष को विरान कर के।
त्याग कर मुझको गये सब, दुर्दशा में जान कर के।
हूँ प्रताड़ित आज जग में, और पीड़ा से धनी अब।
वेदनाएं ज़िन्दगी में, कर रही छाया घनी अब।।
एक ईश्वर का सहारा, आज बस उनकी प्रतीक्षा।
पार कर दो नाथ भव से, आप ही से है अपेक्षा।
प्रीत बिन बेबस हुआ मन, वक्ष में है सनसनी अब।
वेदनाएं जिन्दगी में, कर रही छाया घनी अब।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’