वृद्ध व्यथा
वृद्ध व्यथा देख-देख
अश्रु मेरे उत्सुक होते,
जिन ने पीढ़ी उत्थान किया,
वो ही क्यों भिक्षुक होते।
हृदय सरलता लिए,
कष्टों को नश्वर कर देते,
वृद्ध भींगे ललाट से,
मुस्कानों को अमर कर देते।
प्राण निकल ही जायें,
बीजों को अंकुरित कर देते,
प्रण लिए अंत तक प्रेम का,
प्रेम से प्रेम पुष्पित कर देते।
आभास हो अनिष्ट का,
गृह क्लेश के बीच सेतु बनाते,
वंश के अंश अंश को,
वृद्ध ही पथ प्रशस्त हेतु बनाते ।।@निल