वृद्धाश्रम – कहानी
चंदेल जी के परिवार में दो बेटे मनोज और दिनेश के अलावा बेटी प्रिया भी थी l घर में चंदेल जी की पत्नी और माता सावित्री देवी भी रहती थीं l पिता को गुजरे वर्षों बीत गए थे l
चंदेल जी काफी समझदार व्यक्ति थे l घर में खुशी का माहौल बना रहता था l बच्चे भी दादी को खुश रखते थे l पर यह खुशी ज्यादा दिन तक न रह सकी l हुआ यूँ कि चंदेल जी के परिवार में दूर की बुआ घूमने आयीं l कुछ दिन रहीं और चली गईं l पड़ोस की मिश्रा जी एवं यादव जी की पत्नी भी कभी – कभी आ जाती और दादी से बातें करके चली जाती l किसी रिश्तेदार का घर आना अर्थात् भगवान का घर आना माना जाता है किन्तु जब ये मेहमान घर में फूट का बीज बो जाते हैं तब मन को कष्ट होता है | ऐसा ही चंदेल जी की बुआ ने किया और उनकी पड़ोसन ने | आइये आगे क्या हुआ देखते हैं इस कहानी में |
दो चार दिन बाद दादी के व्यवहार में परिवर्तन होना शुरू हो गया l अब दादी सास – बहू के टी वी सीरियल देखने की जिद करने लगी l बच्चों और दादी में कई बार तू – तू मैं – मैं होनी शुरू होने लगी l मामला और भी गंभीर होने लगा जब दादी अपनी बहु प्रिया पर तीखे प्रहार करने लगी l सभी दादी के इस व्यवहार से खुश नहीं थे l पर दादी के सिर पर तो मानो चंडी सवार हो गयी थी l अब दादी पड़ोसियों के घर भी जाने लगी और अपने परिवार की बुराईयां करने लगी l चंदेल जी का परिवार यह सब सहन करने की स्थिति में नहीं था l
चंदेल जी ने भी पूरी कोशिश की कि किसी तरह माँ के व्यवहार में पहले जैसा निखार आ जाये किन्तु वे भी असफल रहे l चंदेल जी ने अपनी माँ को कुछ दिन के लिए अपने छोटे भाई के पास भेज दिया ताकि कुछ बदलाव आ जाये l किन्तु दादी का यही व्यवहार वहाँ भी छोटे भाई और उसकी पत्नी के साथ भी बना रहा l सभी सोच में पड़ गए कि आखिर दादी ऐसा क्यों कर रही हैं l कुछ दिन बाद दादी वापस आ गयी l पर स्थिति वही बनी रही l
थक हारकर चंदेल जी ने एक निर्णय लिया और अपनी माँ को शहर के ही एक वृद्धाश्रम में छोड़ आए l अब दादी की हालत ख़राब होने लगी | पर मन मसोस कर वे आश्रम में रहने लगीं और घर के लोगों की सभी से चुगली करने लगीं | पर उनकी बातों का किसी पर कोई असर नहीं होता था l वे सब सुनते और मुस्कुरा देते l एक दिन आश्रम में कोई विशेष कार्यक्रम था l जोर शोर से तैयारियाँ हो रही थीं l सभी आज के कार्यक्रम के मेहमान को देखने के लिए उत्सुक थे l कार्यक्रम शुरू हुआ तो मेहमान की कुर्सी पर चंदेल जी विराजमान थे l उन्हैं देखते ही उनकी माँ जोर – जोर से चिल्लाने लगी l लोगों ने किसी तरह उन्हैं चुप कराया l
आश्रम के प्रबंधक महोदय ने चंदेल जी का स्वागत किया और इस आश्रम की स्थापना के लिए चंदेल जी को सम्मानित किया l अगले दिन चंदेल जी के बारे में किसी ने उनकी माँ को बताया कि आपके बेटे ने ही इस आश्रम की स्थापना की थी ताकि घर से बेघर हुए माता – पिता को इस आश्रम में जगह मिले और वे अपना जीवन आराम से गुजार सकें | एक और अच्छी बात ये है कि जिन बच्चों के माता – पिता ने अपने बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया उन्हें भी वे अपनी कोशिशों से उनके घर वापस भेज देते हैं ताकि उनके घर में पहले जैसी खुशियाँ वापस लौट सकें | अब चंदेल जी की माँ को अपने किये पर पछतावा होने लगा और उन्होंने भी अपने बर्ताव में परिवर्तन लाने शुरू कर दिए और आश्रम के अधिकारी से अपने घर के सभी सदस्यों से बात कराने को कहा | अधिकारी महोदय ने उनकी बात सभी से करवायी | दादी सभी से माफ़ी मांग रही थी | अपनी बहु से , बेटे से | सभी एक साथ उनको वापस घर ले जाने के लिए थोड़ी देर बाद ही वृद्धाश्रम आ पहुंचे |
चंदेल जी की माँ अपने आपको अपने परिवार के बीच पाकर बहुत खुश थी और घर के सभी लोग भी |