वृक्ष
वृक्ष
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पेड़ होते भूमि की नित——–शान हैं।
सृष्टि का भूलोक पर——-वरदान हैं।
सब निराले गुण समेटे हैं——-विटप,
फल हवा औषध दिए कुल –दान हैं।
दर्ज पन्नों में रहा इतिहास ——-अब,
बोधि तरु अरु कल्पतरु अभिज्ञान हैं।
है धरा पर रोपना बहुधा ———इन्हें,
फिर बचेगी मनुज तेरी ——-जान हैं।
फिर शुरू हो मैती’ चिपको —-से बड़े,
पूर्व में फूले फले ———-अभियान हैं।
बन्द होना चाहिए वन ———काटना,
रोपने तरु जो धरा ———-परिधान हैं।
****************************************** नीरज पुरोहित रुद्रप्रयाग(उत्तराखण्ड)