वृक्ष हस रहा है।
वृक्ष हस रहा है।
वृक्ष हस रहा है।
खेद मन से हस रहा है।
मूर्ख मानव को देखकर मौन से हस रहा है।
वृक्ष को नाश करने मानव को देख कर बहुत बहुत हस रहा है।
विश्व को विनाश करने केलिए आगे बढे मानव को देख कर हस रहा है।
विज्ञान केलिए अज्ञान बन गए।
आनंद केलिए अल्प आयु बन गए।
धन केलिए मूर्ख बन गए।
वृक्ष हस रहा है।
जि. विजय कुमार
हैदराबाद,तेलंगाना