— वृक्ष भी कुछ कहता है —
जरुरी नही कि तुम आज पर्यावरण
के दिन ही मुझ को याद करो
रात करो चाहे शाम करो
दोपहर करो या नित भोर करो !!
मैं तो सदा जागता रहता हूँ तुम्हारे लिए
नींद में कभी खोता नही तुम्हारे लिए
लगा कर देख लेना आवाज कभी भी
जागता ही मिलूंगा मैं तुम्हारे लिए !!
ला कर कुल्हाड़ी मत काटों मुझे
मेरे भी तने मेरे अपने अंश हैं
फल फूल वनस्पति औषधि यह
सब तुम्हारे लिए ही तो वचनबद्ध हैं !!
सोच कर एक बार मुझ को तुम
ऐसी जगह पर रोपण करो
न चले किसी का वार मुझ पर
सोच समझ कर तुम धरती को अर्पण करो !!
तुम आपस में क्या साथ निभाओगे
जो मैं बड़ा होकर साथ निभा दूंगा
लगा कर देख लो धरती पर तुम सब
चारों तरफ हरियाली ही हरियाली कर दूंगा !!
पछताओगे जब जमीन पर न मुझे पाओगे
काटने के बाद सकून से तुम जी न पाओगे
चलते हुई धुप में तुम सब झुलस जाओगे
अपना घर बसा कर परिंदों का तोड़ जाओगे !!
मुझ को अहंकार नही जो तुम्हे समझाता हूँ
मैं बेजुबान हूँ अपने निष्फल से सब कह जाता हूँ
लगा लो धरती पर अपने हाथों से एक पौधा
यही कहने के लिए बार बार धरती पर आता हूँ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ