वृक्ष बोल उठे..!
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हम वृक्ष धरा की धरोहर हैं!
हे मनुष्य! अब बहुत हुआ!
अब मत काटो हम वृक्षों को,
तुम मनुष्यों ने अति कर दी–
इस धरा की सम्पत्ति उजाड़ दी।
क्यूं काटा हम बे-गुनाह वृक्षों को ?
तुम स्वार्थी मनुष्यों के कारण-
कुदरत के भी नियम बदल गये!
हे मनुष्य! एक समय था- जब!
धरा पर घन-घोर वन लहराते थे।
जिन से पर्याप्त वर्षा होती थी,
समय पर ये मौसम बदलते थे।
हे मनुष्यों! अब ध्यान से सुनो–
तुम! मां-वसुंधरा को वचन दो–
कि हम मनुष्य, हर वर्षा ऋतु में,
हर वर्ष धरा की क्षतिपूर्ति करेंगे।
वृक्षारोपण अभियान चलाएंगे–
रोपे गए पौधों की सुरक्षा करेंगे।
कभी भी हरे-भरे वृक्ष न काटेंगे।
जीयेंगे हम, जीने देंगे वृक्षों को हम।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=
===*उज्जैन (मध्यप्रदेश)*====
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