वृक्ष की ब्यथा
ईश्वर से करे प्रार्थना, एक वृक्ष दुख भरा।
कटने को है तैयार, देखो खड़ा अन्मना।।
इंसान तो इंसानियत को, भूल चुका है।
भगवान है तो सुनले ,मेरे दिल की भावना।
तेरी कृपा से फूल दिए, फल भी दिया है ।
आघात पत्थरो का, मैने सहन किया है ।।
कहते हो सहनशील है जो वही बड़ा है।
बस मौत बढकपन, तो मुझे क्यों चुना है।।
प्राण जिनके मुझसे ,और स्वास्थ्य मुझसे है।
इंसान ने कब मुझे ,मान दिया है ।।
न शक्ति दी कि लड सकू ,न भाग सकू में।
कायरो सी मौत को, क्यों मुझे चुना है।।
यह प्रार्थना है क्रोध की, इंसान विरोध की।
मान दे या मुझको, तुरंत मार दे।।