वृक्षों का निस्वार्थ प्रेम
वृक्ष हमें प्राण वायु देते है,
अर्थात हमें जीवन देते है ।
वृक्षों से हवा शुद्ध होती है,
हमारे श्वासों की ये बाती है।
वृक्षों से मिले हमें फल-फूल,
दवाइयां जो स्वास्थ्य का मूल।
मिट्टी के कटाव को रोके जो ,
धरती की उर्वरा शक्ति है वो।
वो छाया दे हर प्राणी को मगर ,
मौसम की मार सहे खुद पर ।
यह वृक्ष का अप्रत्यक्ष प्रेम है ,
सर्वथा मौन मगर सत्य प्रेम है ।
वृक्ष हमसे कुछ नहीं मांगते ,
सिर्फ देते पर कुछ नही लेते।
मगर हम ऐसे स्वार्थी/कृतघ्न,
प्रेम के बदले करते है हनन ।
हम समझते है उनमें प्राण नही ,
वो मुक अवश्य है निष्प्राण नहीं।
हम हजार बार जन्म लेकर भी,
उतार नहीं सकते उनका ऋण,
अपने प्राण देकर भी नहीं हो ,
सकते उनकी सेवाओं से उऋण।