“वीर सेनानी”
तन – मन जिन्होंने सौंप दिया,
धरा को तिलक लगाने में,
खून की नदियाँ बहा दी,
धरती माँ को नहलाने में,
उन्हीं वीरों की गाथा,
आज मुझे सुनानी हैं,
सिँह की तरहा दहाड़ रहे,
हम वो वीर सेनानी हैं,
अपने खून के कतरों से,
धरती माँ नहलानी हैं,
लुकम चौकी पे जाके,
राजनाथ जी ने ललकारा,
शास्र ही नहीं पढ़ते,
शस्र भी उठाते हैं,
लगा निशाना बन्दूक का,
अब भी तुम्हें समझाते हैं,
सुनो ओ चीन !
दुश्मनों से मिलकर,
हमें मत धमकाओं तुम,
रणभेदी बिगुल बजा,
भूखे शेरों को मत जगाओं तुम,
नींद से जो जाग गये,
तुम पे भारी पड़ जायेंगे,
तुमने बीस मारें,
हम छप्पन मार के जायेंगे,
पहले हम छेड़ते नहीं,
फिर छोड़ते नहीं,
यही मन में ठानी हैं,
सीमा से परे धकेल दिया,
हम वो वीर सेनानी हैं,
अपने खून के कतरों से,
धरती माँ नहलानी हैं,
अब भी बाज़ आ जाओ,
आँखें मत दिखलाओ तुम,
जिसके बलबूते कूद रहें,
उसको भी धूल चटा देंगे,
दिल्ली में बैठे – बैठे,
लाहौर पे झंडा फहरा देंगे,
इतिहास गवाह है,
रणबाँकुरों का,
पग – पग पर बलिदान दिये,
हल्दीघाटी के युद्ध में,
अकबर के भी होश छीन लिये,
सुना नींद में भी सहम जाता था,
डर के मारे रातों को जग जाता था,
अकबर के भी छक्के छुड़ा दिये,
हम वो वीर सेनानी हैं,
अपने खून के कतरों से,
धरती माँ नहलानी हैं,
सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु ने,
बलिदानी जामा पहना था,
धरती माता सजी रहें,
अपना सर्वस्व त्याग दिया,
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्,
कहते – कहते उन्होंने दी क़ुर्बानी हैं,
मौत से भी जो न डरे,
हम वो वीर सेनानी हैं,
“शकुन” अपने खून के कतरों से,
धरती माँ नहलानी हैं।
– शकुंतला अग्रवाल, जयपुर